"मन" पर नियंत्रण कैसे करें ?
मन पर नियंत्रण हम तभी कर सकते हैं जब हम इसके स्त्रोत को समझ सकें| जहाँ से जिस बिंदु से मन का जन्म होता है उसे समझना आवश्यक है| मन की उत्पत्ति प्राण-तत्व से होती है| प्राण-तत्व की चंचलता ही मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार के रूप में व्यक्त होती है| प्राण की चंचलता को स्थिर कर के ही हम मन को वश में कर सकते हैं| पश्चिमी विचारकों के अनुसार मन एक ही है| पर हिन्दू धर्म-शास्त्रों के अनुसार मन हमारे अंतःकरण का एक भाग है| अंतःकरण के .... मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार .... ये चार भाग हैं| (१) बिना क्रम के लहरों की तरह विचारों का आना "मन" है| (२) विचारों का संगठित रूप "बुद्धि" है जो कुछ निर्णय लेने में समर्थ है जिन्हें शब्दों के द्वारा व्यक्त किया जा सकता है| (३) अव्यवस्थित मन और बुद्धि कुछ भी कल्पना या मानसिक रचना कर लेते हैं, वह "चित्त" है| यह हमारी चेतना का केंद्र बिन्दु है| (४) जो हम नहीं हैं, उसके होने का मिथ्या भाव अहंकार है|
मन की स्वाभाविक चञ्चलता जीवन का चिह्न है| मन को उपयोगी काम में लगाने और चिंता से मुक्त करने के लिए दैनिक अभ्यास आवश्यक है| मन को वश में करने के लिए ..... (१) उसे किसी बीज मंत्र से जोड़ना आवश्यक है| उचित बीजमंत्र का ज्ञान तो एक सद्गुरु ही करा सकते हैं| (२) बीजमंत्र के साथ साथ मन को मेरुदंड में सुषुम्ना नाड़ी में होने वाले प्राण-प्रवाह से जोड़ना भी आवश्यक है| इसकी विधि भी कोई सद्गुरु ही सिखा सकते हैं|
सद्गुरु के मार्गदर्शन में साधना कर के उनकी परम कृपा से ही हम चंचल प्राण को स्थिर कर पाते हैं| तभी एकोsहं द्वितीयोनास्ति का भाव आता है| प्राणों की स्थिरता ही शिवत्व में स्थिति है| जब हम सम्पूर्ण समष्टि के साथ एक हो जाते हैं, तब हम पाते हैं कि सिर्फ एक मैं ही हूँ जो जड़-चेतन में सर्वत्र व्याप्त है, मेरे सिवाय अन्य कोई भी नहीं है| यही शिवत्व है और यही निःसंगत्व है|
प्राण तत्व को स्थिर करना ही योग साधना है| यही चित्त की वृत्तियों का निरोध है| इसी के लिए हम यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा और ध्यान करते हैं| चंचल प्राण से ही चित्त की वृत्तियों और मन का जन्म होता है| प्राण का घनीभूत रूप ही कुंडलिनी महाशक्ति है| प्राण तत्व की स्थिरता ही हमें परमशिव की अनुभूतियाँ कराती है| महाशक्ति कुंडलिनी का परमशिव से मिलन ही योग है| जगन्माता की कृपा हम सब पर बनी रहे|
ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ || कृपा शंकर ७ नवंबर २०१९